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आख़िर वक़्त पूरा हुआ मुलाक़ात का

  आख़िर वक़्त पूरा हुआ मुलाक़ात का अब जाने की घड़ी आ गयी दिल पे, मुश्क़िल बड़ी आ गयी अब और मौक़ा है क्या सवालात का? आख़िर वक़्त पूरा हुआ मुलाक़ात का दोबारा मिलें, ना भी मिलें, किसे पता, किसे ख़बर है? क्यों ना आज ही जी लें थोड़ा हिस्से में मिली मोहलत अगर है तुम आए हो तो जाओगे, ज्ञात था  आख़िर वक़्त पूरा हुआ मुलाक़ात का  तुमसे मिलने की ख़्वाहिश तो पूरी हुई  शायद ही कोई और आरज़ू बाकी है  लेकिन हाँ मैं तो भूल ही गया था  मुलाक़ात काफ़ी नहीं, एक तू बाकी है  ग़म है कि कुछ ही पल का साथ था  आख़िर वक़्त पूरा हुआ मुलाक़ात का  अब तो पँछी भी घर लौट चले तुम भी उन जैसे मत हो जाना  कभी एक डाल कभी दूजी पर  कहीं अम्बर के मत हो जाना  शाम ढल रही, हुआ अंधेरा रात का  चलो जाओ मिलते हैं कभी  आख़िर वक़्त पूरा हुआ मुलाक़ात का. 

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